बेटे को लेकर युवराज सिंह ने कही ऐसी बात, जिसे सुनकर हर पैरेंट्स सोच में पड़ जाएंगे!

टीम इंडिया के पूर्व स्टार ऑलराउंडर युवराज सिंह भले ही क्रिकेट के मैदान में लाखों दिलों की धड़कन रहे हों, लेकिन एक पिता के रूप में उनका नजरिया बेहद संवेदनशील और अलग है। मदर्स डे वीक में वायरल हुई उनकी बातचीत में युवराज ने खुलकर बताया कि वह नहीं चाहते कि उनका बेटा ओरियन उनके ही रास्ते पर चले और क्रिकेटर बने। उन्होंने कहा, “अगर वह क्रिकेट खेलना चाहे तो मैं पूरा सपोर्ट करूंगा, लेकिन मैं नहीं चाहता कि वह क्रिकेट खेले। आज के समय में बच्चों पर बहुत प्रेशर होता है। हर बच्चे की तुलना उसके पिता से की जाती है, जो कि बहुत गलत है। हर किसी में वो टैलेंट नहीं होता। किसी का टैलेंट किसी और चीज़ में हो सकता है।”

हाइलाइट्स:

  • युवराज सिंह ने कहा – “मैं नहीं चाहता बेटा क्रिकेट खेले”
  • बोले – “हर बच्चे पर पिता की लेगेसी का अनफेयर दबाव”
  • विशेषज्ञों ने भी कहा – सपोर्टिव पेरेंटिंग से बच्चे में आती है आत्मविश्वास और पहचान
  • परिवार की छवि और पैसे के दबाव को तोड़ने की ज़रूरत

युवराज सिंह का यह बयान सिर्फ एक क्रिकेटर की निजी राय नहीं, बल्कि एक पिता की सच्ची चिंता है। उनकी यह बात सोशल मीडिया पर भी तेजी से वायरल हो रही है, क्योंकि यह समाज में मौजूद उस छुपे हुए दबाव को उजागर करती है जिसमें बच्चों को अपनी पहचान नहीं, बल्कि परिवार की प्रतिष्ठा को ढोना पड़ता है। मुंबई के सर एचएन रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल की क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट मेहेज़बीन डोरडी बताती हैं कि, “जब माता-पिता अपने बच्चों को अपनी राह खुद चुनने की आज़ादी देते हैं, तो इससे उनका मानसिक स्वास्थ्य मजबूत होता है और आत्मविश्वास पैदा होता है। बच्चे सीखते हैं कि उनकी क़ीमत प्रदर्शन से नहीं बल्कि उनके व्यक्तित्व से तय होती है।”

‘पैसा ही सफलता है’ – समाज की सोच बन रही है बच्चों के लिए बोझ

मेघना बनर्जी, जो काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट और हैबिट कोच हैं, कहती हैं कि समाज में बच्चों को शुरू से ही यह सिखाया जाता है कि सफलता का मतलब है पैसा, लग्ज़री कार और बड़ा घर। ऐसे में जब उनके सपने इन सामाजिक परिभाषाओं से मेल नहीं खाते, तो उनके भीतर एक अंदरूनी टकराव शुरू हो जाता है। वे बताती हैं कि “बच्चों को अकसर परिवार की छवि को सुरक्षा कवच मानकर उसी रास्ते पर धकेला जाता है, लेकिन यह सुरक्षा ही एक दिन जाल बन जाती है। सपनों को आज़ादी तभी मिलती है जब माता-पिता उन्हें बिना शर्त स्वीकार करें।”

युवराज सिंह की यह सोच हमें बताती है कि असली हीरो वही होता है जो अपने बच्चों को उड़ने की आज़ादी देता है, भले ही वो उसकी उड़ान से अलग हो। उनके शब्द ना सिर्फ क्रिकेट फैंस के लिए, बल्कि हर माता-पिता के लिए सोचने लायक हैं।

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